‘आद्य शिव’
हड़प्पाई पुरास्थल मोहनजोदड़ों से एक विशेष मुहर प्राप्त हुई है जिसमें एक व्यक्ति पालथी मार कर ‘योगी’ की मुद्रा में बैठा दिखाया गया
- सबसे पहले इसे ऋग्वेदिक देवता रूद्र से जोड़ा गया जो पौराणिक परंपराओं में शिव के लिए प्रयुक्त एक नाम है
- लेकिन शिव के विपरीत रुद्र को ऋग्वेद में न तो पशुपति (मवेशियों के स्वामी) और न ही एक योगी के रूप में दिखाया गया है।
- इसलिए रूद्र न कहकर आद्य शिव अथवा पशुपतिनाथ का नाम दिया गया
- आगे चलकर हुई नवीन खोजों से जब यह प्रमाणित हो गया कि वैदिक अथवा पौराणिक परम्पराओं से इसका सम्बन्ध संभव नहीं है
- ऐसे में आधुनिक इतिहासकार इसे शमन का प्रतीक मानते हैं
- शमन वे महिलाएँ और पुरुष होते हैं जेा जादुई तथा इलाज करने की शक्ति होने और साथ ही दूसरी दुनिया से संपर्क साधने के सामर्थ्य का दावा करते हैं।
- इस तरह यह मुहर आकृति हड़प्पाई समाज में अंध-विश्वास और तन्त्र- मन्त्र साधना के प्रचलन की ओर संकेत करती है