हड़प्पाई मुहर
- हड़प्पा सभ्यता भारतीय इतिहास के आद्य-ऐतिहासिक काल का हिस्सा है यानि इतिहास का वह हिस्सा जब भाषा का विकास हो चुका था पर या तो वह लिखित रूप में प्रचलित नहीं थी या फिर हम उसके लिखित साक्ष्य को पढ़ नहीं पाए.
- ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि हड़प्पा या सिन्धु घाटी की सभ्यता की जानकारी के प्रमुख स्रोत पुरातात्विक स्रोत ही है
- इस तरह हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्रोतों में- स्थापत्य अवशेष (खण्डहर), शवाधान, विलासिता की वस्तुएं, मनके और मुहरें शामिल हैं
मुहर की विशेषताएं
यह संभवतः हड़प्पा अथवा सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है।
हड़प्पाई मुहर सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई जाती थी
इन मुहरों पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा
एक ऐसी लिपि के चिह्न उत्कीर्णित हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
यहाँ ध्येयान रखने योग्य एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये मुहरें मुद्रा के रूप में नहीं बल्कि व्यापारिक वस्तुओं की सीलबंदी के लिए प्रयुक्त होती थी
हड़प्पाई मुहरों का धार्मिक महत्व-
इन मुहरों में से कुछ पर संभवतः अनुष्ठान के दृश्य बने हैं, जिनके अध्ययन से उस समय की धार्मिक आस्थाओं और प्रथाओं की जानकारी मिलती हैं
कुछ अन्य मुहरें जिन पर पेड़-पौधे के चित्र उकेरे गये हैं हड़प्पाई समाज में प्रकृति की पूजा के प्रचलित होने का संकेत देते हैं।
मुहरों पर बनाए गए कुछ जानवर–जैसे कि एक सींग वाला जानवर, जिसे आमतौर पर एक शृंगी वृषभ कहा जाता है, का ज्यादातर मुहरों पर मिलना, इस और इशारा करता हैं कि यह हड़प्पाई समाज में एक पूज्य पशु रहा होगा.
कुछ मुहरों पर एक आकृति जिसे पालथी मार कर ‘योगी’ की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है जिसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई हैं, इसे शमन या तांत्रिक का प्रतीक माना जाता है - यह हड़प्पाई समाज में अंध- विश्वास अथवा तंत्र-मन्त्र साधना की जानकारी देता हैं