ईंटें, मनके और अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता
》पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं-
→जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं और
→सामान्यतया एक साथ,
→एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा
→काल-खंड से संबद्ध पाए जाते हैं
》1921 में दया राम साहनी ने हड़प्पा की खुदाई के साथ कुछ विशेष प्रकार की प्राचीनतम मुहरें खोज निकालीं
》1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखाल दास बनर्जी ने हड़प्पा से के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं जिससे अनुमान लगाया गया ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे।
》इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण और काल
》इस सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा नामक स्थान, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी के नाम पर किया गया है।
》इसका काल 2600 और 1900 ई. पू. के बीच माना जाता है।
आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा संस्कृति
》हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है।
》इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।
आरंभिक हड़प्पा संस्कृति
》आरंभिक हड़प्पा संस्कृति सिंध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में थीं।
》इनकी अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली थीं
》इनमें कृषि, पशुपालन तथा शिल्पकारी भी प्रचलित थी ।
》ये बस्तियाँ आमतौर पर छोटी होती थीं और इनमें बड़े आकार की संरचनाएँ/भवन लगभग न के बराबर होते थे ।
आरंभिक हड़प्पा तथा हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रम-भंग
》कुछ स्थलों पर बड़े पैमाने पर इलाकों के जलाए जाने के संकेत
और कुछ स्थलों को त्याग दिए जाने के संकेत से ऐसा प्रतीत होता है कि→आरंभिक हड़प्पा तथा विकसित हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रम-भंग था
हड़प्पाई मुहर
》हड़प्पाई मुहर संभवतः हड़प्पा अथवा सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है, जो सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई जाती थी
》इन मुहरों पर जानवरों के चित्र और एक रहस्यमयी लिपि के चिह्न उकेरे गये हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
》ये मुहरें मुद्रा के रूप में नहीं बल्कि व्यापारिक वस्तुओं की सीलबंदी के लिए प्रयुक्त होती थी
हड़प्पाई मुहरों का धार्मिक महत्व
》हड़प्पाई मुहरों में से कुछ पर अनुष्ठान के दृश्य बने हैं,
→इनसे धार्मिक आस्थाओं और प्रथाओं जानकारी मिलती है।
》मुहरों पर पेड़-पौधे उत्कीर्णित हैं→जो प्रकृतिपूजा का संकेत देते हैं।
》मुहरों के चित्र,जैसे →एकशृंगी →धार्मिक आस्था का परिचायक है
》पालथी मार कर बैठे ‘योगी’ की आकृति→आद्य शिव’→तन्त्र मन्त्र व अंधविश्वास में आस्था की जानकारी देता है ।
‘आद्य शिव’ या शमन
》सबसे पहले इसे ऋग्वेदिक देवता रूद्र से जोड़ा गया
→जो पौराणिक परंपराओं में शिव के लिए प्रयुक्त एक नाम है
→लेकिन शिव के विपरीत रुद्र को ऋग्वेद में न तो पशुपति (मवेशियों के स्वामी) और न ही एक योगी के रूप में दिखाया गया है।
》आधुनिक इतिहासकार इसे शमन का प्रतीक मानते हैं
→शमन वे महिलाएँ और पुरुष होते हैं जेा जादुई तथा इलाज करने की शक्ति होने और साथ ही दूसरी दुनिया से संपर्क साधने के सामर्थ्य का दावा करते हैं।
》यह वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या अधिक है
》इसके चिह्नों की संख्या लगभग 375 से 400 के बीच है।
》यह लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी
→ऐसा इसलिए माना जाता है- क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर चौड़ा अंतराल है और बाईं ओर संकुचित
》यह लिपि नष्टप्राय वस्तुओं पर भी लिखी मिली है,
→जिसका अर्थ है कि- हड़प्पा सभ्यता में शिक्षा साक्षरता व्यापक थी
》सबसे लंबे हड़प्पाई अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं।
हड़प्पा सभ्यता में निर्वाह के तरीके
हड़प्पाई कृषि
》जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्वविद आहार संबंधी आदतों के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं
→इनका अध्ययन पुरा-वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं
→हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों में गेहूँ, जौ, दाल, सफ़ेद चना तथा तिल शामिल हैं।
→बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे।
→हड़प्पाई स्थलों से चावल के दाने अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं।
हड़प्पाई कृषि प्रौद्योगिकी
》मुहरों पर किए गए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियाँ(मिट्टी की मूर्तियाँ) यह बताती हैं कि उन्हें वृषभ की जानकारी थी
→इस आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था।
》चोलिस्तान के कई स्थलों और बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं
》कालीबंगन (राजस्थान) से जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है
→इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते हुए विद्यमान थे जो बताते हैं कि एक साथ दो अलग-अलग फ़सलें उगाई जाती थीं।
》फ़सलों की कटाई के लिए हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों/ धातु के औज़ारों का प्रयोग करते थे
》अधिकांश हड़प्पा स्थल अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता थीं
→अफ़गानिस्तान में शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं.
→पंजाब और सिंध में नहरों के अवशेष नहीं मिले हैं
→ऐसा संभव है कि पंजाब और सिंध की प्राचीन नहरें बहुत पहले ही गाद से भर गई थीं।
》ऐसा भी हो सकता है कि कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता हो।
》इसके अतिरिक्त धौलावीरा (गुजरात) में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवतः कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था।
उत्तल और अवतल चक्कियाँ
》अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं।
→साधारणतः ये चक्कियाँ कठोर बलुआ पत्थर से निर्मित थीं
→दो मुख्य प्रकार चक्कियाँ- उत्तल और अवतल
→सालन या तरी बनाने के लिए जड़ी-बूटियों तथा मसालों को कूटने के लिए प्रयुक्त होने के कारण श्रमिकों ने इसे ‘सालन पत्थर’ का नाम दिया गया है
हड़प्पाई पशुपालन/शिकार
》हड़प्पा स्थलों, भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर की हड्डियाँ से संकेत मिलता है कि पशुपालन एवं शिकार होता था
→इनका अध्ययन पुरा-प्राणिविज्ञानियों /जीव-पुरातत्वविदों करते हैं जो प्राचीन जीव अवशेषों/हड्डियों के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं।
हड़प्पाई शहर नियोजन
हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केंद्रों का विकास था
हड़प्पा की दुर्दशा
》हड़प्पा सबसे पहले खोजा गया स्थल था, इसे ईंट चुराने वालों ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया था।
→कनिंघम के अनुसार→ रेल-पटरी के लिए ईंटें बिछाने के लिए हड़प्पा की कई प्राचीन संरचनाएँ नष्ट कर दी गईं।
मोहनजोदड़ो : एक नियोजित शहरी केंद्र
दुर्ग और निचला शहर
》मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है,जो दो भागों में विभाजित है-
→एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया→दुर्ग
→दूसरा अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया→निचला शहर
→दुर्ग की ऊँचाई का कारण →कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बना होना →दुर्ग को दीवार से घेरकर निचले शहर से अलग किया गया था, हालाँकि निचला शहर भी दीवार से घेरा जाता था।
→धौलावीरा और लोथल(गुजरात) की पूरी बस्ती किलेबंद थी
→लोथल में दुर्ग दीवार से घिरा तो नहीं था
हड़प्पाई जल निकास प्रणाली
》हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक नियोजित जल निकास प्रणाली थी।
→सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
→पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था।
→हर आवास गली की नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और इन्हें ऐसी ईंटों से ढँका गया था जिन्हें सफ़ाई के लिए हटाया जा सके।
→जल निकास प्रणालियाँ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थीं बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी मिली थीं।
→लोथल में आवासों के निर्माण के लिए जहाँ कच्ची ईंटों का प्रयोग हुआ था, वहीं नालियाँ पकी ईंटों से बनाई गई थीं।
→अर्नेस्ट मैके के अनुसार- ‘‘निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है।’’(अर्ली इंडस सिविलाईज़ेशन, 1948)
हड़प्पाई गृह स्थापत्य: आवासीय भवन
》आवासीय-भवन एक आँगन पर केंद्रित थे और चारों ओर कमरे थे।
》भूमि तल पर खिड़कियाँ नहीं थी,
》मुख्य द्वार से आँगन का सीधा अवलोकन नहीं होता था।
→हड़प्पाई अपने एकांत / निजता को विशेष महत्व देते थे
》हर घर का ईंटों के फ़र्श से बना अपना एक स्नानघर होता था
》 दूसरे तल या छत पर जाने हेतु सीढ़ियों बनाई गई थी।
》कई आवासों में कुएँ थे जो एक ऐसे कमरे में बनाए गए थे जिसमें बाहर से आया जा सकता था
→इनका प्रयोग संभवतः राहगीरों द्वारा किया जाता था।
》मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।
हड़प्पाई सार्वजनिक भवन
मालगोदाम–
》एक ऐसी विशाल संरचना है जिसके ईंटों से बने केवल निचले हिस्से शेष हैं, जबकि ऊपरी हिस्से जो संभवतः लकड़ी से बने थे, जो बहुत पहले ही नष्ट हो गए थे
विशाल स्नानागार
》आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है
》जलाशय तल तक जाने के लिए उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ थीं।
》जलाशय के किनारों पर ईंटों को जिप्सम के गारे से जमाकर इसे जलबद्ध(water proof)किया गया था।
》इसके तीनों ओर कक्ष बने थे जिनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था।
》सफाई के लिए इसका पानी एक बड़े नाले में बहाया जा सकता था।
》इसके उत्तर में आठ स्नानघर बनाए गए थे।
》इसका प्रयोग विशेष आनुष्ठाानिक स्नान के लिए किया जाता था।
हड़प्पाई शवाधान
》किसी संस्कृति विशेष में रहने वाले लोगों के बीच सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताएँ जानने के लिए पुरातत्वविद कई विधियों का प्रयोग करते हैं- इन्हीं विधियों में से एक शवाधानों का अध्ययन है।
→मिस्र के पिरामिडों से कुछ हड़प्पा सभ्यता के समकालीन थे,
→मिस्र के कई पिरामिड राजकीय शवाधान थे जहाँ बहुत बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति दफ़नाई गई थी।
→ हड़प्पाई शवाधानों में मृतकों को गर्तों में दफ़नाया जाता था, इन लोगों में मृतकों के साथ बहुमूल्य वस्तुएँ दफ़नाने में विश्वास नहीं था।
》हड़प्पाई शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती थी,
→ये विविधताएँ संभवतः सामाजिक भिन्नताओं की ओर संकेत करती हैं
》कुछ कब्रों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं
→जो एक ऐसी मान्यता की ओर संकेत करते हैं जिसके अनुसार इन वस्तुओं का मृत्योपरांत प्रयोग किया जा सकता था।
→पुरुषों और महिलाओं, दोनों के शवाधानों से आभूषण मिले हैं।
→1980 के दशक के मध्य में हड़प्पा के कब्रिस्तान में हुए उत्खननों में एक पुरुष की खोपड़ी के समीप शंख के तीन छल्लों, से बना एक आभूषण मिला था→कहीं-कहीं पर मृतकों को ताँबे के दर्पणों के साथ दफ़नाया गया था।
‘विलासिता’ की वस्तुएँ
》सामाजिक भिन्नता को पहचानने की एक अन्य विधि→ दैनिक उपयोग तथा विलासिता की वस्तुओं का अध्ययन करना हैं।
》दैनिक उपयोग वस्तुओं में रोज़मर्रा के उपयोग की वस्तुएँ सम्मिलित हैं जिन्हें पत्थर अथवा मिट्टी जैसे सामान्य पदार्थों से आसानी से बनाया जा सकता है, जैसे- चक्कियाँ, मृदभाण्ड, सूइयाँ, झाँवा आदि।
》विलासिता की वस्तु - वे वस्तुएं जो दुर्लभ अथवा मँहगी हों, या फिर स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों से बनी हों, जैसे फेयेंस से बनी वस्तुएं
फ़ेयॉन्स
》घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पका कर बनाया गया पदार्थ
》इसके पात्र संभवतः कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था।
》फ़यॉन्स से बने लघुपात्र जो संभवतः सुगंधित द्रव्यों के पात्रों के रूप में प्रयुक्त होते थे, अधिकांशतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से मिले हैं और कालीबंगन जैसी छोटी बस्तियों से बिलकुल नहीं।
हड़प्पाई शिल्प उत्पादन
》चन्हुदड़ो शिल्प-उत्पादन में संलग्न एक बहुत छोटी बस्ती है
》शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाना सम्मिलित थे।
मनके बनाने की तकनीक
》इसे बनाने की तकनीकों में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएँ थीं।
》सेलखड़ी एक बहुत मुलायम पत्थर है→कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किए जाते थे।
》पत्थर के पिंडों कठोर होते थे→इन पिंडों को पहले विभिन्न आकारों में तोड़ा जाता था, फिर बारीकी से शल्क निकाल कर इन्हें अंतिम रूप दिया जाता था→जिसकी घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करने के साथ ही मनके बनाने की यह प्रक्रिया पूरी होती थी।
》चन्हुदड़ो, लोथल और हाल ही में धौलावीरा से छेद करने के विशेष उपकरण मिले हैं।
》नागेश्वर तथा बालाकोट दोनों बस्तियाँ समुद्र-तट के समीप स्थित हैं, ये शंख से बनी वस्तुओं के निर्माण के विशिष्ट केंद्र थे
हड़प्पाई बाट
》ये बाट सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे
》आमतौर पर ये किसी भी तरह के निशान से रहित घनाकार होते थे
》विनिमय बाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाली द्वारा नियंत्रित थे।
》इन बाटों के निचले मानदंड द्विआधारी थे जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे।
》छोटे बाटों का प्रयोग संभवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था।
》दिलमुन के बाट हड़प्पाई प्रणाली का अनुसरण करते थे
शिल्प-उत्पादन केंद्रों की पहचान
》शिल्प-उत्पादन के केंद्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद सामान्यतः निम्नलिखित को ढूँढ़ते हैंः -
→प्रस्तर पिंड,कच्चा माल,औज़ार, अपूर्ण वस्तुएँ,त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा-करकट।
→कूड़ा-करकट शिल्प कार्य के सबसे अच्छे संकेतकों में से एक हैं।
कच्चा माल प्राप्त करने संबंधी नीतियाँ
》बैलगाड़ियों के मिट्टी से बने खिलौनों के प्रतिरूप संकेत करते हैं कि स्थल मार्ग परिवहन का एक महत्वपूर्ण साधन था।
》संभवतः सिंधु तथा इसकी उपनदियों के नदी-मार्गों और तटीय मार्गों का भी प्रयोग किया जाता था।
》शिल्प-उत्पादन हेतु माल प्राप्त करने तीन तरीके -
बस्तियाँ स्थापित करना-
》नागेश्वर और बालाकोट में जहाँ शंख आसानी से उपलब्ध था, वहां बस्तियाँ स्थापित कीं गई→शोर्तुघई,(अफ़गानिस्तान)- नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि
→लोथल - कार्नीलियन
→दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात- सेलखड़ी
अभियान भेजना
》राजस्थान के खेतड़ी अँचल (ताँबे के लिए) तथा दक्षिण भारत (सोने के लिए) अभियान भेजना।
→इन अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के साथ संपर्क स्थापित किया जाता था।
सुदूर क्षेत्रों से संपर्क
》ताँबा संभवतः ओमान से भी लाया जाता था।
》एक विशिष्ट प्रकार का पात्र अर्थात् एक बड़ा हड़प्पाई मर्तबान जिसके ऊपर काली मिट्टी की एक मोटी परत चढ़ाई गई थी, ओमानी स्थलों से मिला है।
गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति
》राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्वविदों ने गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है।
→इस संस्कृति के विशिष्ट मृदभाण्ड हड़प्पाई मृदभाण्डों से भिन्न थे
→यहाँ ताँबे की वस्तुओं की असाधारण संपदा मिली थी।
मेसोपोटामिया-लेख | हड़प्पा- मेसोपोटामिया सभ्यता के बीच सम्बन्ध
》तीसरी सहस्राब्दि ई.पू. से जुड़े मेसोपोटामिया के लेख में दिलमुन(बहरीन द्वीप), मगान(ओमान) तथा मेलुहा(हड़प्पाई क्षेत्र) के क्षेत्रों के बीच संपर्क की जानकारी मिलती है।
》यह लेख मेलुहा से प्राप्त उत्पादों का उल्लेख करता हैं- कार्नीलियन,लाजवर्द-मणि,ताँबा,सोना तथा विभिन्न लकड़ियाँ।
》मेलुहा के विषय में एक मेसोपोटामियाई मिथक हाजा पक्षी(मोर) का वर्णन करता है ।
》मेसोपोटामिया के लेख मेलुहा को नाविकों का देश कहते हैं।
हड़प्पाई राजनैतिक व्यवस्था
हड़प्पाई राजनैतिक व्यवस्था को लेकर चार मत प्रचलित हैं-
1. राजतंत्रीय शासन
》मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को एक प्रासाद(महल) की संज्ञा दी गई है हालाँकि इससे जुडी कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
》एक पत्थर की मूर्ति को ‘पुरोहित-राजा’ की संज्ञा दी गई थी →ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरातत्वविद मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित-राजाओं’ से परिचित थे और यही समानताएँ उन्होंने सिंधु क्षेत्र में भी ढूँढ़ी।
》इस तरह कुछ पुरातत्वविदों का यह मानना है कि मेसोपोटामिया की तरह ही हड़प्पा में भी राजतंत्रीय व्यवस्था थी
2. शासक की अनुपस्थिति
》कुछ पुरातत्वविद इस मत के हैं कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
3.कबीलाई शासन
》कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि यहाँ कोई एक नहीं बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे।
4. केंट्रीय समन्वयक व्यवस्था
》कुछ पुरातत्वविद यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था जैसा कि पुरावस्तुओं में समानताओं, नियोजित बस्तियों के साक्ष्यों, ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात, तथा बस्तियों के कच्चे-माल के स्रोतों के समीप स्थापित होने से स्पष्ट है।
》इस तरह इस क्षेत्र की केन्द्रीय सत्ता अन्य क्षेत्रीय शासकों के मध्य तालमेल स्थापित करती थी
हड़प्पा सभ्यता का पतन
》 1900 ईसा पूर्व के बाद की पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ इन संस्कृतियों में एक ग्रामीण जीवनशैली की ओर संकेत करती हैं। इन संस्कृतियों को ‘‘उत्तर हड़प्पा’’ अथवा ‘‘अनुवर्ती संस्कृतियाँ’’ कहा गया।
》इस सभ्यता के नगरीय से ग्रामीण जीवन शैली की ओर परिवर्तन को हड़प्पा सभ्यता के पतन की संज्ञा दी जाती है।
हड़प्पा सभ्यता के पतन के प्रमुख कारण-
बाहरी आक्रमण कारण:
》डैडमैन लेन ,R-37 से बड़ी संख्या में लोगों के अस्थि-पंजर उन आभूषणों के साथ मिले थे जो इन्होंने मृत्यु के समय पहने हुए थे।
》आर.ई.एम. व्हीलर ने उपमहाद्वीप में ज्ञात प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के साक्ष्यों से इसका संबंध स्थापित करने का प्रयास किया।
》उन्होंने लिखाः ऋग्वेद में पुर शब्द का उल्लेख है जिसका अर्थ है प्राचीर, किला या गढ़। आर्यों के युद्ध के देवता इंद्र को पुरंदर, अर्थात् गढ़-विध्वंसक कहा गया है।
》इस आधार पर उन्होंने आर्य आक्रमण को हड़प्पा सभ्यता के पतन के लिए जिम्मेदार बताया
》1960 के दशक में जॉर्ज डेल्स नामक पुरातत्वविद ने मोहनजोदड़ो में जनसंहार के साक्ष्यों पर सवाल उठाए। उन्होंने दिखाया कि उस स्थान पर मिले सभी अस्थि-पंजर एक ही काल से संबद्ध नहीं थे
जलवायु परिवर्तन के कारण
》जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, अत्यधिक बाढ़, नदियों का सूख जाना और/या मार्ग बदल लेना तथा भूमि का अत्यधिक उपयोग सम्मिलित हैं।
→इनमें से कुछ ‘कारण’ कुछ बस्तियों के संदर्भ में तो सही हो सकते हैं परंतु पूरी सभ्यता के पतन की व्याख्या नहीं करते।
》आधुनिक मत- ऐसा लगता है कि एक सुदृढ़ एकीकरण के तत्व, संभवतः हड़प्पाई राज्य, का अंत हो गया था।
प्रमुख व्यक्तित्व
जॉन मार्शल
→जॉन मार्शल भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्वविद थे
→वे यहाँ यूनान तथा क्रीट में अपने कार्यों का अनुभव भी लाए।
→एस.एन. राव अपनी पुस्तक - द स्टोरी ऑफ़ इंडियन आर्कियोलॉजी, में लिखते हैं, ‘‘मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हज़ार वर्ष पीछे छोड़ा"
अलेक्ज़ैंडर कनिंघम
》यह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल थे →इन्हें भारतीय पुरातत्व का जनक भी कहा जाता है,
कनिंघम का भ्रम
》प्रारम्भ में पुरातत्वविद अध्ययन के लिए लिखित स्रोतों (साहित्य तथा अभिलेख) का प्रयोग अधिक करते थे।
》इस तरह कनिंघम ने भी प्राचीन और आरंभिक बस्तियों की पहचान के लिए चौथी से सातवीं शताब्दी ई. के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध तीर्थयात्रियों द्वारा छोड़े गए वृतांतों का प्रयोग किया।
》उन्होंने उत्खनन के समय वे ऐसी पुरावस्तुओं को खोजने का प्रयास किया, जो सांस्कृतिक महत्त्व की थीं।
》क्योंकि हड़प्पा जैसा पुरास्थल चीनी तीर्थयात्रियों के यात्रा-वृतांत का हिस्सा नहीं था, इसलिए वह हड़प्पा के महत्त्व को समझने में चूक गए।
》इस तरह उनका यह मानना था कि भारतीय इतिहास का प्रारंभ गंगा की घाटी में पनपे पहले शहरों के साथ ही हुआ था न कि उससे पहले, इसे उनके ऐतिहासिक भ्रम या भूल माना जाता है।
आर.ई.एम. व्हीलर और नयी तकनीक
》1944 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने उन्होंने पुरातत्व खुदाई की एक नई तकनीक का विकास किया, जिसमे-
→एकसमान क्षैतिज इकाइयों के आधार पर खुदाई की बजाय टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण पर जोर दिया गया
→सेना के पूर्व-ब्रिगेडियर के रूप में उन्होंने पुरातत्व की पद्धति में एक सैनिक परिशुद्धता का समावेश भी किया।
हड़प्पा सभ्यता के खोज से जुड़ी प्रमुख पुस्तकें
1. मोहनजोदड़ो एंड द इंडस सिविलाईज़ेशन- जॉन मार्शल,
2. ‘द मिथिकल मैसेकर एट मोहनजोदड़ो’ - एफ.डेल्स
3.माई आर्कियोलॉजिकल मिशन टू इंडिया एंड पाकिस्तान-आर.ई.एम. व्हीलर,
4. अर्ली इंडस सिविलाईज़ेशन- अर्नेस्ट मैके
5. द स्टोरी ऑफ़ इंडियन आर्कियोलॉजी, -एस.एन. राव,