CUET HISTORY | इकाई -II राजनीतिक और आर्थिक इतिहास – राजा, किसान और नगर


 




      राजा, किसान और नगर




इकाई II: राजनीतिक और आर्थिक इतिहास – राजा, किसान और नगर


वैदिक संस्कृति 


➡लगभग  1500 ई.पू में सिंधु नदी और इसकी उपनदियों के किनारे रहने वाले लोगों द्वारा ऋग्वेद का लेखन किया गया। 



महापाषाण संस्कृति


1000 ई.पू में मध्य और दक्षिण भारत दक्कन पठार क्षेत्र और कर्नाटक में शवों के अंतिम संस्कार के नए तरीके भी सामने आए, जिनमें महापाषाण के नाम से ख्यात पत्थरों के बड़े-बड़े ढाँचे मिले हैं। 

➡कई स्थानों पर पाया गया है कि शवों के साथ विभिन्न प्रकार के लोहे से बने उपकरण और हथियारों को भी दफ़नाया गया था।



ईसा पूर्व छठी शताब्दी से नए परिवर्तनों के प्रमाण 


➡आरंभिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों का विकास है। 

➡कृषि उपज को संगठित करने के तरीके का विकास- रोपण कृषि, लोहे का प्रयोग, जो किसान उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रहते थे उन्होंने खेती के लिए कुदाल का उपयोग किया.

➡उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों और कहीं-कहीं नहरों के माध्यम से सिंचाई करना था।

नए नगरों का उदय हुआ- महाजनपद , मगध

➡बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ।



जनपद और महाजनपद


 जनपद का अर्थ- एक ऐसा  भूखंड है जहाँ कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है। 

जनपद की अपेक्षा एक विशाल भौगोलिक क्षेत्र जहाँ विभिन्न कुल या वंश से सम्बन्धित समुदाय परस्पर संगठित रूप से निवास करता था, महाजनपद कहलाता था 


प्रारंभिक राज्य : सोलह महाजनपद

➡बौद्ध और जैन धर्म आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का उल्लेख मिलता है। 

➡यहाँ से उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली हैं जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है। इन्हें उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र कहा जाता है।

  • संभवतः इनका उपयोग अमीर लोग किया करते होंगे। साथ ही सोने चाँदी, कांस्य, ताँबे, हाथी दाँत, शीशे जैसे तरह-तरह के पदार्थों के बने गहने, उपकरण, हथियार, बर्तन, सीप और पक्की मिट्टी मिली हैं।

➡अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था, जैसे वज्जि

  • राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे।

  • ओलीगार्की या समूहशासन उसे कहते हैं जहाँ सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती है।  रोमन गणराज्य के में  वह एक समूह शासन ही थे।

  • भगवान महावीर और भगवान बुद्ध  इन्हीं गणों से संबंधित थे। 

➡धर्मशास्त्र में शासक सहित अन्य के लिए नियमों का निर्धारण किया गया और यह अपेक्षा की जाती थी कि शासक क्षत्रिय वर्ण से ही हों

➡प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जिसे प्रायः किले से घेरा जाता था। 

➡अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तंत्र 



मगध की सत्ता के विकास


➡छठी से चौथी शताब्दी ई.पू. में मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया। आधुनिक इतिहासकार इसके कई कारण बताते हैं-

  1. मगध क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी। 

  2. लोहे की खदानें (आधुनिक झारखंड में) भी आसानी से उपलब्ध थीं जिससे उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था।

  3. जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे जो सेना के एक महत्वपूर्ण अंग थे।

  4. गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था। 

  5. आरंभिक जैन और बौद्ध लेखकों ने बिंबिसार, अजातसत्तु और महापद्मनंद जैसे महत्त्वाकांक्षी शासक को इसके लिए महत्वपूर्ण माना है

➡प्रारंभ में, राजगाह (आधुनिक बिहार के राजगीर का प्राकृत नाम) मगध की राजधानी थी। 

  • इस शब्द का अर्थ है ‘राजाओं का घर’। 

  • चौथी शताब्दी ई.पू. में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया, जिसे अब पटना कहा जाता है जिसकी गंगा के रास्ते आवागमन के मार्ग पर महत्वपूर्ण अवस्थिति थी।

  • पाटलिपुत्र का विकास पाटलिग्राम नाम के एक गाँव से हुआ।

  • चौथी शताब्दी ई.पू. तक आते-आते यह एशिया के सबसे बड़े नगरों में से एक बन गया। 

  • जब चीनी यात्री श्वैन त्सांग सातवीं सदी ई. में यहाँ आया तो इसे यह नगर खंडहर में बदला मिला



मौर्य साम्राज्य- एक आरंभिक साम्राज्य


➡मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 321 ई.पू.) का शासन पश्चिमोत्तर में अफ़गानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था।

➡उनके पौत्र असोक ने जिन्हें आरंभिक भारत का सर्वप्रसिद्ध शासक माना जा सकता है, कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) पर विजय प्राप्त की।





मौर्यवंश के बारे  में जानकारी 

मौर्य साम्राज्य के इतिहास के स्रोत- 

➡पुरातात्विक प्रमाण, विशेषतया मूर्तिकला।

➡चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आए यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ द्वारा लिखा गया विवरण- इंडिका 

➡अर्थशास्त्र, संभवतः इसके कुछ भागों की रचना कौटिल्य या चाणक्य ने की थी जो चंद्रगुप्त के मंत्री थे। 

➡जैन, बौद्ध और पौराणिक ग्रंथों तथा संस्कृत वाङ्मय

➡पत्थरों और स्तंभों पर मिले असोक के अभिलेख प्रायः सबसे मूल्यवान स्रोत माने जाते हैं।



अभिलेख


➡अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं। 

➡प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था जो जनसामान्य की भाषाएँ होती थीं। 

➡तमिल, पालि और संस्कृत जैसी भाषाओं में भी अभिलेख मिलते हैं। 

➡अभिलेखों के अध्ययन को अभिलेखशास्त्र/ एपिग्राफी कहते हैं।



प्रिंसेप और पियदस्सी


➡1838 में  ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला। 

➡अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी, यानी मनोहर मुखाकृति वाले राजा और  देवानांपिय अर्थात् देवताओं का प्रिय का नाम लिखा है जो असोक द्वारा अपनाई गई उपाधि थी.

➡अशोक के अभिलेखों में प्रयुक्त शब्द पतिवेदक शब्द का अर्थ संवाददाता माना जाता है

इस शोध से आरंभिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को नयी दिशा मिली,-

  • भारतीय और यूरोपीय विद्वानों ने उपमहाद्वीप पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों की वंशावलियों की पुनर्रचना

  • बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों तक उपमहाद्वीप के राजनीतिक इतिहास का एक सामान्य चित्र तैयार हो गया।


भाषाएँ और लिपियाँ

  • असोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत(ब्राह्मी लिपि) में हैं जबकि पश्चिमोत्तर से मिले अभिलेख जबकि पश्चिमोत्तर के अभिलेख खरोष्ठी, अरामेइक और यूनानी भाषा में हैं। 


अभिलेख साक्ष्य की सीमा

अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा होती है-

  • अक्षरों को हलके ढंग से उत्कीर्ण, लुप्त अक्षर 

  • वास्तविक अर्थ के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान कठिन 

  • कृषक जीवन या आम जनजीवन की जानकारी नहीं 

  • राजकीय दृष्टिकोण से प्रभावित



मौर्य साम्राज्य का प्रशासन


➡मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे, राजधानी पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केंद्र–तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि और सुवर्णगिरि।

➡तक्षशिला और उज्जयिनी दोनों लंबी दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित थे

सुवर्णगिरि (अर्थात् सोने के पहाड़) कर्नाटक में सोने की खदान के लिए उपयोगी था।


सेना

➡मेगस्थनीज़ ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति और छः उपसमितियों का उल्लेख किया है। 

➡इनमें से एक का काम नौसेना का संचालन करना था, 

दूसरी यातायात और खान-पान का संचालन करती थी,

➡तीसरी का काम पैदल सैनिकों का संचालन, 

➡चौथी का अश्वारोहियों, 

➡पाँचवीं का रथारोहियों 

➡छठी का काम हाथियों का संचालन करना था। 


अधिकारी 

➡अधिकारियों में से कुछ नदियों की देख-रेख और भूमि मापन का काम करते हैं जैसा कि मिस्र में होता था। 

➡अधिकारी शिकारियों का संचालन 

➡कर वसूली और भूमि से जुड़े सभी व्यवसायों, खननकर्ताओं का निरीक्षण 


राजा की वेदना : कलिंग युद्ध


➡जब देवानांपिय पियदस्सी ने अपने शासन के आठ वर्ष पूरे किए तो उन्होंने कलिंग (आधुनिक तटवर्ती उड़ीसा) पर विजय प्राप्त की।

➡व्यापक हिंसा के कारण उन्होंने युद्ध नीति छोड़ दी और बौद्ध बन गए



असोक का धम्म 


➡धम्म के सिद्धांत बहुत ही साधारण और सार्वभौमिक थे। 

➡इनमें बड़ों के प्रति आदर, संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परंपराओं का आदर शामिल हैं।

➡धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्त नाम से विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई।



मौर्य साम्राज्य का महत्व


➡भारत का प्राचीनतम एवं विशाल और समृद्ध  साम्राज्य 

➡प्रस्तर मूर्तियों की अद्भुत कला 

➡अभिलेखों पर लिखे संदेश अन्य शासकों के अभिलेखों से भिन्न हैं।

➡असोक का व्यक्तित्व : लोककल्याणकारी शासन की संकल्पना

➡इसलिए बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने भी असोक को प्रेरणा का स्रोत माना।



राजधर्म के नवीन सिद्धांत


मौर्य साम्राज्य मात्र डेढ़ सौ साल तक ही चल पाया . दूसरी शताब्दी ई.पू. आते-आते उपमहाद्वीप के कई भागों में नए-नए शासक और रजवाड़े स्थापित होने लगे।


दक्षिण के राजा और सरदार

➡दक्कन और उससे दक्षिण के क्षेत्र में स्थित तमिलकम (अर्थात् तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश और केरल के कुछ हिस्से) में चोल, चेर और पाण्ड्य जैसी सरदारियों का उदय हुआ। 


 सरदार और सरदारी

➡सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता है जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता है और नहीं भी। 

➡सरदार के कार्यों में विशेष अनुष्ठान का संचालन, युद्ध के समय नेतृत्व करना और विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभाना शामिल है। 

  1. वह अपने अधीन लोगों से भेंट लेता है (जबकि राजा कर वसूली करते हैं),

  2. अपने समर्थकों में उस भेंट का वितरण करता है। 

  3. कई सरदार और राजा लंबी दूरी के व्यापार द्वारा राजस्व जुटाते थे।

  4. सरदारी में सामान्यतया कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते हैं।

  5. प्राचीन तमिल संगम ग्रंथों में एेसी कविताएँ हैं जो सरदारों का विवरण देती हैं

  6. तमिल महाकाव्य-सिलप्पादिकारम् 


दैविक राजा

➡मध्य एशिया से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक शासन करने वाले कुषाण शासकों ने उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास माट के एक देवस्थान पर कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ लगाई गई थीं। 

➡कई कुषाण शासकों ने अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि भी लगाई थी। 

➡संभवतः वे उन चीनी शासकों से प्रेरित हुए होंगे, जो स्वयं को स्वर्गपुत्र कहते थे।



गुप्त शासक


 ➡गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया है। 

➡कवियों द्वारा अपने राजा या स्वामी की प्रशंसा में लिखी प्रशस्तियाँ भी उपयोगी रही हैं।

➡उदाहरण - इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख/ प्रयाग प्रशस्ति 

  • इसकी रचना हरिषेण ने संस्कृत में की थी,जो सम्राट समुद्रगुप्त के राजकवि थे

  • मनुस्मृति आरंभिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधिग्रंथ है। इसे संस्कृत भाषा में दूसरी शताब्दी ई.पू. और दूसरी शताब्दी ई. के बीच लिखा गया था। 



गुजरात की  सुदर्शन झील


गिरनार में स्थित  सुदर्शन झील एक कृत्रिम जलाशय था

➡इसका ज्ञान लगभग दूसरी शताब्दी ई. के संस्कृत के एक पाषाण अभिलेख से होता है। 

➡इस अभिलेख को शक शासक रुद्रदमन की उपलब्धियों का उल्लेख करने के लिए बनवाया गया था।

➡इस झील का निर्माण मौर्य काल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। लेकिन तत्कालीन शासक रुद्रदमन ने इस झील की मरम्मत अपने खर्चे से करवाई थी, और इसके लिए अपनी प्रजा से कर भी नहीं लिया था। 

➡इसी पाषाण-खंड में कहा गया है कि गुप्त वंश के एक शासक स्कंदगुप्त ने एक बार फिर इस झील की मरम्मत करवाई थी।



जनता में राजा की छवि


➡जातक और पंचतंत्र जैसे ग्रंथों में वर्णित कथाओं आम जन जीवन की जानकारी मिलती हैं

जातक कथाएँ पहली सहस्राब्दि ई. के मध्य में पालि भाषा में लिखी गईं।

गंदतिन्दु जातक नामक एक कहानी में बताया गया है कि एक कुटिल राजा की प्रजा किस प्रकार से दुखी रहती है। 

इस कथा से पता चलता है कि-

  1. राजा और प्रजा, विशेषकर ग्रामीण प्रजा, के बीच संबंध तनावपूर्ण रहते थे, क्योंकि शासक बड़े-बड़े कर की माँग करते थे जिससे किसान खासतौर पर त्रस्त रहते थे।

  2. इस संकट से बचने का एक उपाय जंगल की ओर भाग जाना होता था। 

  3. करों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए किसानों ने उपज बढ़ाने के और उपाए ढूँढ़ने शुरू किए।



ग्रामीण समाज में विभिन्नताएँ


उत्तर भारतीय में विषमताएं 

➡बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े ज़मींदारों का उल्लेख मिलता है। 

➡पालि भाषा में गहपति का प्रयोग छोटे किसानों और ज़मींदारों के लिए किया जाता था। 

गहपति: एक अन्य अर्थ

  • गहपति घर का मुखिया होता था और घर में रहने वाली महिलाओं, बच्चों, नौकरों और दासों पर नियंत्रण करता था।

  • कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नगरों में रहने वाले संभ्रांत व्यक्तियों और व्यापारियों के लिए भी होता था।

  • बड़े-बड़े ज़मींदार और ग्राम प्रधान शक्तिशाली माने जाते थे जो प्रायः किसानों पर नियंत्रण रखते थे। 

    • ग्राम प्रधान का पद प्रायः वंशानुगत होता था.


दक्षिण भारतीय में विषमताएं 

➡आरंभिक तमिल संगम साहित्य में भी गाँवों में रहने वाले विभिन्न वर्गों के लोगों का उल्लेख है,-

  • वेल्लालर-बड़े ज़मींदार;

  • हलवाहा /उल्वर- स्वतंत्र किसान

  • कृषक दास- अणिमई। 



भूमिदान 


➡भूमिदान के जो प्रमाण मिले हैं वे साधारण तौर पर धार्मिक संस्थाओं या ब्राह्मणों को दिए गए थे


भूमिदान के कारण

➡कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भूमिदान शासक वंश द्वारा कृषि को नए क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी,

➡कुछ का कहना है कि भूमिदान से दुर्बल होते राजनीतिक प्रभुत्व का संकेत मिलता है अर्थात् राजा का शासन सामंतों पर दुर्बल होने लगा तो उन्होंने भूमिदान के माध्यम से अपने समर्थक जुटाने प्रारंभ कर दिए। 

➡कुछ का मानना है  कि राजा स्वयं को उत्कृष्ट स्तर के मानव के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे, इसलिए वे अपनी शक्ति का आडंबर प्रस्तुत करना चाहते थे।



अग्रहार 


➡अग्रहार उस भूभाग को कहते थे जो ब्राह्मणों को दान किया जाता था। 

➡ब्राह्मणों से भूमिकर या अन्य प्रकार के कर नहीं वसूले जाते थे। 

➡ब्राह्मणों को स्वयं स्थानीय लोगों से कर वसूलने का अधिकार था।


अग्रहार के लिए रियायतें-

  • इस गाँव सैनिक प्रवेश नहीं

  • शासकीय अधिकारियों को यह गाँव घास देने और आसन में प्रयुक्त होने वाली जानवरों की खाल और कोयला देने के दायित्व से मुक्त



प्रभावती गुप्त 


➡प्रभावती गुप्त आरंभिक भारत के एक सबसे महत्वपूर्ण शासक चंद्रगुप्त द्वितीय (लगभग 375-415 ई.) की पुत्री थी। 

➡उसका विवाह दक्कन पठार के वाकाटक परिवार में हुआ था

➡संस्कृत धर्मशास्त्रों के अनुसार, महिलाओं को भूमि जैसी संपत्ति पर स्वतंत्र अधिकार नहीं था लेकिन एक अभिलेख से पता चलता है कि प्रभावती भूमि की स्वामी थी और उसने दंगुन गाँव का दान भी किया था। 

➡इस राज्यादेश को 13वें राज्य वर्ष में लिखा गया है और इसे चक्रदास ने उत्कीर्ण किया है।

➡इसका एक कारण यह हो सकता है-

  •  क्योंकि वह एक रानी थी और इसीलिए उनका यह उदाहरण एक विरला ही रहा हो। 

  • यह भी संभव है कि धर्मशास्त्रों को हर स्थान पर समान रूप से लागू नहीं किया जाता हो।



छोटे दानात्मक अभिलेख


 ➡इनमें दाता के नाम के साथ-साथ प्रायः उसके व्यवसाय का भी उल्लेख होता है। 

➡कभी-कभी उत्पादकों और व्यापारियों के संघ का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें श्रेणी कहा गया है। 

  • ये श्रेणियाँ संभवतः पहले कच्चे माल को खरीदती थीं; फिर उनसे सामान तैयार कर बाज़ार में बेच देती थीं। 



उपमहाद्वीप और उसके बाहर का व्यापार


➡तमिल भाषा में मसत्थुवन और प्राकृत में सत्थवाह और सेट्ठी के नाम से प्रसिद्ध सफल व्यापारी बड़े धनी हो जाते थे। 

➡रोमन साम्राज्य में काली मिर्च, जैसे मसालों तथा कपड़ों व जड़ी-बूटियों की भारी माँग थी। 

➡यह एक यूनानी समुद्र यात्री द्वारा रचित पेरिप्लस अॉफ़ एरीथ्रियन सी (लगभग प्रथम शताब्दी ई.) में इसका वर्णन है है।

पेरिप्लस यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ समुद्री यात्रा है और एरीथ्रियन यूनानी भाषा में लाल सागर को कहते हैं।



सिक्के और राजा


➡मुद्राशास्त्र/न्यूमैटिक्स सिक्कों का अध्ययन है। 

➡चाँदी और ताँबे के आहत सिक्के (छठी शताब्दी ई.पू.) सबसे पहले ढाले गए और प्रयोग में आए। 

➡आहत सिक्के पर बने प्रतीकों को उन विशेष मौर्य वंश जैसे राजवंशों के प्रतीकों से मिलाकर पहचान करने की कोशिश की गई तो पता चला कि इन सिक्कों को राजाओं ने जारी किया था। 

➡यह भी संभव है कि व्यापारियों, धनपतियों और नागरिकों ने इस प्रकार के कुछ सिक्के जारी किए हों। 

शासकों की प्रतिमा और नाम के साथ सबसे पहले सिक्के हिंद-यूनानी शासकों ने जारी किए, इनमें  मेनाण्डर सबसे प्रसिद्ध था  

सोने के सिक्के बड़े पैमाने पर प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण राजाओं ने जारी किए थे, इनमें कनिष्क सबसे प्रसिद्ध था

  • इनके आकार और वज़न तत्कालीन रोमन सम्राटों तथा ईरान के पार्थियन शासकों द्वारा जारी सिक्कों के बिलकुल समान थे। 

दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में रोमन सिक्के मिले हैं जिनसे यह स्पष्ट है कि व्यापारिक तंत्र राजनीतिक सीमाओं से बँधा नहीं था; 

पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों के यौधेय (प्रथम शताब्दी ई.) कबायली गणराज्यों ने भी सिक्के जारी किए थे। 

  • पुराविदों को यौधेय शासकों द्वारा जारी ताँबे के सिक्के मिले हैं 

  • सोने के सबसे भव्य सिक्कों में से कुछ गुप्त शासकों ने जारी किए। 


निष्कर्ष:

उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वैदिक काल से लेकर मौर्य एवं गुप्त साम्राज्य तक भारतीय इतिहास में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक संरचनाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। जनपदों से महाजनपदों तक और गणराज्यों से साम्राज्यों तक की यात्रा ने प्रशासनिक प्रणाली को सुदृढ़ किया। ये विषय CBSE और CUET जैसी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे।